चित्रकूट | देश की नदियों का स्वरूप लगातार बिगड़ रहा है, उनकी सेहत चिंताजनक होती जा रही है, यही हाल राम की नगरी चित्रकूट से गुजरने वाली मंदाकिनी नदी का है। इसे निर्मल और अविरल कैसे बनाए रखा जाए, इसके लिए नदी के तट पर पाठशाला का आयोजन किया गया। दो दिनों तक चली इस पाठशाला में तमाम विशेषज्ञों ने निर्मलता और अविरलता का पाठ पढ़ाया। वैसे, बुंदेलखंड को जलसंकट वाले इलाके के तौर पर पहचाना जाता है, इसकी वजह यहां के जलस्रोतों का लगातार सिकुड़ना रहा है। तमाम जलस्रोत लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं, उन पर कब्जों का दौर जारी है। ऐसी ही कहानी मंदाकिनी नदी की है। यह वही नदी है, जिसके तट पर भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास काल के साढ़े 11 वर्ष गुजारे थे।
बुंदेलखंड का चित्रकूटधाम वह स्थान है, जो मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच फैला है और यहां से गुजरने वाली मंदाकिनी नदी का धार्मिक महत्व है। अब इस नदी की स्थिति लगातार बिगड़ रही हैं। धारा धीमी पड़ रही है, नदी के तट पर अवैध और पक्के निर्माण का दौर जारी है, तो जगह-जगह पानी कीचड़ में बदलता नजर आता है। वाकई में इस नदी की स्थिति क्या है और उसमें सुधार कैसे लाया जा सकता है। इसको लेकर देशभर के नदी व पर्यावरण प्रेमी जमा हुए। बात कमरे में तो हुई, मगर नदी पर संवाद करने पाठशाला के छात्र के तौर पर तमाम विशेषज्ञ नदी के किनारे पहुंचे और कई किलोमीटर की पदयात्रा भी की, पानी की शुद्धता का परीक्षण किया, ताकि नदी की वास्तविक स्थिति को जाना-समझा जा सके।
नदी यात्रा के दौरान एक बात साफ तौर पर नजर आई कि जहां भी मानव का दखल है, वहां नदी का बुरा हाल है और जहां घने जंगल के बीच से नदी गुजर रही है, वहां का जल न केवल अविरल है, बल्कि निर्मल भी है। नदी के सबसे प्रमुख स्थल राम घाट के आसपास का जल तो हाथ में लेना भी आसान नहीं है। यहां एक नाला सीधे नदी में मिल रहा है। जगह-जगह बनाए गए चैकडेम नदी की मुसीबत बढ़ाने वाले हैं।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र रामबाबू तिवारी की अगुवाई में आयोजित इस पाठशाला में नदी की हालत पर सभी ने चिंता जताई, क्योंकि कई स्थानों पर इस नदी का मूल स्वस्प ही नहीं बचा है। सर्वसम्मति से विशेषज्ञों ने एक चित्रकूट डिक्लेयरेशन जारी करने का फैसला लिया और तय किया है कि स्थानीय लोगों की भागीदारी और विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में एक अभियान चलाया जाएगा, जो नदी की सेहत को दुरुस्त करने वाला होगा।
विंध्याचल पर्वत श्रेणी पर स्थित है चित्रकूट। इसी पर्वत श्रृंखला में स्थित महर्षि अत्रि एवं सती अनुसुइया का आश्रम है, यही मंदाकिनी नदी का उद्गम स्थल है। कुछ लोग मंदाकिनी का उद्गम स्थल सबरी जलप्रपात से भी मानते हैं। कहा जाता है कि सती अनुसुइया ने अपने तपोबल से मंदाकिनी को उत्पन्न किया था।
यह नदी लगभग 50 किलोमीटर की यात्रा तय करती है और युमना में मिलती है, यह नदी लाखों किसानों के सिंचाई के लिए जल प्रदान करती है, तो वहीं करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। साथ ही धार्मिक सांस्कृतिक पर्यटको को आकर्षित करती है। मंदाकिनी नदी किनारे बड़े-बड़े पर्यटन के केंद्र : रामघाट, जानकीकुंड, स्फटिक शिला, सती अनुसुइया आश्रम, पंच प्रयाग, चक्की घाट, ताठी घाट आदि स्थित हैं।
म्ांदाकिनी नदी में विशेष पर्वो पर 10 से 15 लाख लोगों का स्नान आम बात है। इतना ही नहीं, यहां साबुन, शैम्पू आदि का खुले तौर पर उपयोग तो होता ही है, साथ में शवों को भी प्रवाहित किया जाता है। नाले भी इस नदी की सेहत को बिगाड़ने में कम भूमिका नहीं निभा रहे हैं। पुराने शोध कहते हैं कि अगर नदी की सेहत बिगाड़ने का यही खेल जारी रहा तो आने वाले दो दशकों बाद इस नदी में सिर्फ बारिश के मौसम में ही पानी नजर आएगा।